“ उन्हें आता है हमारे प्यार पे गुस्सा। हमें उनके गुस्से पे प्यार आता है। " - उर्मिला ( वतन और देश )”
“धोखा देना और धोखा खाना इंसानी फितरत है, जो इस लानत से आजाद है वो जरूर जंगल में रहता है।”
“मैं कभी नहीं देखता की क्या किया जा चुका है; मैं हमेशा देखता हूँ कि क्या किया जाना बाकी है.”
“दो न्याय अगर तो आधा दो,पर, इसमें भी यदि बाधा हो,तो दे दो केवल पाँच ग्राम,रक्खो अपनी धरती तमाम।हम वहीं खुशी से खायेंगे,परिजन पर असि न उठायेंगे!दुर्योधन वह भी दे ना सका,आशिष समाज की ले न सका,उलटे, हरि को बाँधने चला,जो था असाध्य, साधने चला।जन नाश मनुज पर छाता है,पहले विवेक मर जाता है।हरि ने भीषण हुंकार किया,अपना स्वरूप-विस्तार किया,डगमग-डगमग दिग्गज डोले,भगवान् कुपित होकर बोले-'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।यह देख, गगन मुझमें लय है,यह देख, पवन मुझमें लय है,मुझमें विलीन झंकार सकल,मुझमें लय है संसार सकल।अमरत्व फूलता है मुझमें,संहार झूलता है मुझमें।”
“शेर को शेर की तरह व्यवहार करने में कितनी पुस्तकों की सहायता होती है ?”
“सकल पदारथ या जग मांही, बाकी ऐसा है कि बिना हेर-फेर कुछ पावत नाही”