“रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गये,धोये गये हम ऐसे कि बस पाक हो गये.कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बे-असर,परदे में गुल कि लाख जिगर चाक हो गये.करने गये थे उससे तग़ाफ़ुल का हम गिला,की एक ही निगाह कि बस ख़ाक हो गये.इस रंग से उठाई कल उसने असद की लाश,दुश्मन भी जिसको देखके ग़मनाक हो गये.”

Mirza Ghalib

Explore This Quote Further

Quote by Mirza Ghalib: “रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गये,धोये गये हम ऐसे … - Image 1

Similar quotes

“Adapt or perish, now as ever, is nature’s inexorable imperativeअनुकूल बनें या नष्ट हो जाएं, अब या कभी भी, यही प्रकृति कि निष्ठुर अनिवार्यता है”


“शेर को शेर की तरह व्यवहार करने में कितनी पुस्तकों की सहायता होती है ?”


“दो न्याय अगर तो आधा दो,पर, इसमें भी यदि बाधा हो,तो दे दो केवल पाँच ग्राम,रक्खो अपनी धरती तमाम।हम वहीं खुशी से खायेंगे,परिजन पर असि न उठायेंगे!दुर्योधन वह भी दे ना सका,आशिष समाज की ले न सका,उलटे, हरि को बाँधने चला,जो था असाध्य, साधने चला।जन नाश मनुज पर छाता है,पहले विवेक मर जाता है।हरि ने भीषण हुंकार किया,अपना स्वरूप-विस्तार किया,डगमग-डगमग दिग्गज डोले,भगवान् कुपित होकर बोले-'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।यह देख, गगन मुझमें लय है,यह देख, पवन मुझमें लय है,मुझमें विलीन झंकार सकल,मुझमें लय है संसार सकल।अमरत्व फूलता है मुझमें,संहार झूलता है मुझमें।”


“धोखा देना और धोखा खाना इंसानी फितरत है, जो इस लानत से आजाद है वो जरूर जंगल में रहता है।”


“आओ फिर से दिया जलाएँभरी दुपहरी में अंधियारासूरज परछाई से हाराअंतरतम का नेह निचोड़ेंबुझी हुई बाती सुलगाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँहम पड़ाव को समझे मंज़िललक्ष्य हुआ आंखों से ओझलवतर्मान के मोहजाल मेंआने वाला कल न भुलाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ।आहुति बाकी यज्ञ अधूराअपनों के विघ्नों ने घेराअंतिम जय का वज़्र बनानेनव दधीचि हड्डियां गलाएँ।आओ फिर से दिया जलाएँ”


“मैं कभी नहीं देखता की क्या किया जा चुका है; मैं हमेशा देखता हूँ कि क्या किया जाना बाकी है.”