“मेरी कविता क्या है!सच्चाई के दो मोती हैं; एक खुशी की परछाईं का एक दर्द की गहराई का --विकास प्रताप सिंह 'हितैषी”

VikasPratap Singh

VikasPratap Singh - “मेरी कविता क्या है!सच्चाई के द...” 1

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“रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गये,धोये गये हम ऐसे कि बस पाक हो गये.कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बे-असर,परदे में गुल कि लाख जिगर चाक हो गये.करने गये थे उससे तग़ाफ़ुल का हम गिला,की एक ही निगाह कि बस ख़ाक हो गये.इस रंग से उठाई कल उसने असद की लाश,दुश्मन भी जिसको देखके ग़मनाक हो गये.”

Mirza Ghalib
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“मैं कभी नहीं देखता की क्या किया जा चुका है; मैं हमेशा देखता हूँ कि क्या किया जाना बाकी है.”

Lord Buddha भगवानगौतम बुद ध
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“मोहोब्बत देख ली मैंने ज़माने बार के लोगो की...जहाँ कुछ दाम ज्यादा हों....वहीँ इंसान बिकते हैं...”

Gurnam Singh Sodhi
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“शेर को शेर की तरह व्यवहार करने में कितनी पुस्तकों की सहायता होती है ?”

Anshuman Awasthi
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“दो न्याय अगर तो आधा दो,पर, इसमें भी यदि बाधा हो,तो दे दो केवल पाँच ग्राम,रक्खो अपनी धरती तमाम।हम वहीं खुशी से खायेंगे,परिजन पर असि न उठायेंगे!दुर्योधन वह भी दे ना सका,आशिष समाज की ले न सका,उलटे, हरि को बाँधने चला,जो था असाध्य, साधने चला।जन नाश मनुज पर छाता है,पहले विवेक मर जाता है।हरि ने भीषण हुंकार किया,अपना स्वरूप-विस्तार किया,डगमग-डगमग दिग्गज डोले,भगवान् कुपित होकर बोले-'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।यह देख, गगन मुझमें लय है,यह देख, पवन मुझमें लय है,मुझमें विलीन झंकार सकल,मुझमें लय है संसार सकल।अमरत्व फूलता है मुझमें,संहार झूलता है मुझमें।”

Ramdhari Singh Dinkar
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